शब ए फलक पे, जो टिका रोशन हुआ है,
दिल में बसे अंधेरो का जैसे, कारण हुआ है.
तड़पता है, हर खयाल, हर जज्ब ए तनहा,
तेरी यादों से इस कदर, दिल में अनशन हुआ है.
तेरी यादों से इस कदर, दिल में अनशन हुआ है.
कुछ नमी भीगे मौसम ने दी, थोड़ी आखो से,
जिसे चाहा, आंसुओ को उससे अपनापन हुआ है.
जिसे चाहा, आंसुओ को उससे अपनापन हुआ है.
लख्त ए जिगर को मैंने, आइना समझ लिया,
टुकड़े हजार हो, तनहा इस दिल का दर्पन हुआ है.
टुकड़े हजार हो, तनहा इस दिल का दर्पन हुआ है.
फकत इश्क ने ही, उजागर कर दिया बेवफाई को,
बेपनाह मोहब्बत करके, अधमरा ये मन हुआ है.
बेपनाह मोहब्बत करके, अधमरा ये मन हुआ है.
भटक रहा इस जहा में "शायर", दर बदर हो गया,
न रहा कोई ठिकाना, सुना जिसका नशेमन हुआ है.
न रहा कोई ठिकाना, सुना जिसका नशेमन हुआ है.
रचनाकार- अतुल जोशी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, गंगा से सवाल पूछने वाला संगीतकार - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअतुल जोशी जी की यह रचना निसंदेह बहुत ही अच्छी है। अच्छी रचना प्रस्तुत करने के लिए आपका आभार।
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