Monday, September 7, 2015

विनती कान्हा से- कृष्णा मोहन दुबे

कान्हा तेरी इस मुरली से
मुझको हरदम डाह रही!
मैं कान्हा-कान्हा रटती,
और ये मुई तेरे होंठ धरी!!
इक दिन सूने में मिल गई
बंसी मुझको सुन ये तेरी!
तोड़ फेकने का मन किया,
उठाई जो..भरी महक तेरी!!
तभी से हर चीज तेरी मोहन
मुझको लगने लगी है भली!
आज कन्हैया बिनती है मेरी
लगा लेने दे होंठों से ये मुरली!!
मेरे प्रेम के गीत आज ये गायेगी,
अब अपनी ही मधुर धुन में बंसी!
तुझ संग ओ कान्हा सुन, अब तो,
मोरपंख-बंसी भी मेरे मन बसी!!
रचनाकार- कृष्णा मोहन दुबे.  

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