Monday, September 7, 2015

सबब ए दिल ए बर्बाद- अतुल जोशी

शब ए फलक पे, जो टिका रोशन हुआ है,
दिल में बसे अंधेरो का जैसे, कारण हुआ है.
तड़पता है, हर खयाल, हर जज्ब ए तनहा,
तेरी यादों से इस कदर, दिल में अनशन हुआ है.
कुछ नमी भीगे मौसम ने दी, थोड़ी आखो से,
जिसे चाहा, आंसुओ को उससे अपनापन हुआ है.
लख्त ए जिगर को मैंने, आइना समझ लिया,
टुकड़े हजार हो, तनहा इस दिल का दर्पन हुआ है.
फकत इश्क ने ही, उजागर कर दिया बेवफाई को,
बेपनाह मोहब्बत करके, अधमरा ये मन हुआ है.
भटक रहा इस जहा में "शायर", दर बदर हो गया,
न रहा कोई ठिकाना, सुना जिसका नशेमन हुआ है.
रचनाकार- अतुल जोशी

इल्तजा- सलमान खान

कभी उसे भी पढ़ने दो कुरान में लिखे मन्त्र 
कभी तुम भी सुनो वेदों में रची आयते,
उसे छु लेने दो मुहम्मद के कलाम को
तुम भी गीता को सजदों में रख कर देखो,
वो भी दिल में खुदा की लौ जला कर देखे
तुम भी राम रस की खुमारी को समझो,
उसे बहकने दो अज़ान की धुनों पर
तुम भी फज्र में आरती कर के देखो,
उसे पी लेने दो तिलावत में बसी मय
तुम भी बुतखाने को मय खाना बनाकर देखो,
उसे पार कर लेने दो अपनी चौखटो को
तुम भी उस के दर पर दस्तक दे कर देखो!


रचनाकार- सलमान खान, मेरठ

विनती कान्हा से- कृष्णा मोहन दुबे

कान्हा तेरी इस मुरली से
मुझको हरदम डाह रही!
मैं कान्हा-कान्हा रटती,
और ये मुई तेरे होंठ धरी!!
इक दिन सूने में मिल गई
बंसी मुझको सुन ये तेरी!
तोड़ फेकने का मन किया,
उठाई जो..भरी महक तेरी!!
तभी से हर चीज तेरी मोहन
मुझको लगने लगी है भली!
आज कन्हैया बिनती है मेरी
लगा लेने दे होंठों से ये मुरली!!
मेरे प्रेम के गीत आज ये गायेगी,
अब अपनी ही मधुर धुन में बंसी!
तुझ संग ओ कान्हा सुन, अब तो,
मोरपंख-बंसी भी मेरे मन बसी!!
रचनाकार- कृष्णा मोहन दुबे.  

मैली यमुना- हरिओम श्रीवास्तव

मां वह पेड़ कदंब का, जो था यमुना तीर l
वहाँ न पाकर अब उसे, मनवा धरे न धीर ll 
मनवा धरे न धीर, हो गई यमुना मैली l
कान्हां के बिन आज, वहाँ नीरवता फैली ll
बंशी की नहिं तान, सुनाई दे हंगामां l
आयेंगे क्या श्याम, बता, मेरी प्यारी मां ll


रचनाकार- हरिओम श्रीवास्तव, भोपाल.