Friday, August 21, 2015

कविता- याद के झरोखे

आँख में आज हल्की नमी-सी है;
जाने क्यूँ? याद तेरी थमी-सी है।
वो तेरा खिड़की के झरोंखे से,
छुप-छुपकर ! चुप-चुपकर !!
नजरें मिलाना; नजरें चुराना,
लजाना; घबराना; इठलाना;कतराना,
नजरें उठाना...वो नजरें झुकाना;
प्रेम-प्रणय-सा... वो तेरा मुस्काना
.खुद को; खुद ही अर्पण कर जाना।
सब कुछ तो है !
वो खिड़की...वो झरोंखा...
वो तेरी याद...

बस तेरे हम...
सब है...
फिर ! 

तुम क्यूँ नहीं हो..?

 रचनाकार- आलोक बंसल 

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