एक चना भी क्या कभी, फोड़ सका है भाड़।
कारज होते सफल जब, मिलकर करें जुगाड़।।1।।
कारज होते सफल जब, मिलकर करें जुगाड़।।1।।
मिलकर ही ग्यारह बनें, अलग-अलग हों एक।
सागर के अस्तित्व में, नदिंयाँ मिलें अनेक।।2।।
सागर के अस्तित्व में, नदिंयाँ मिलें अनेक।।2।।
दो दिल मिलने से बसे, एक नया संसार।
दोंनों के मतभेद से, लगता सब निस्सार।।3।।
दोंनों के मतभेद से, लगता सब निस्सार।।3।।
दो पहिंयों के मेल से, गाड़ी हो गतिमान।
गाड़ी से होकर अलग, पहिये का क्या मान।।4।।
गाड़ी से होकर अलग, पहिये का क्या मान।।4।।
शक्ति एकता में रहे, पृथक-पृथक सब सून।
एक-एक ग्यारह बनें, यही कहे मजमून।।5।।
एक-एक ग्यारह बनें, यही कहे मजमून।।5।।
रचनाकार- हरिओम श्रीवास्तव
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