मां वह पेड़ कदंब का, जो था यमुना तीर l
वहाँ न पाकर अब उसे, मनवा धरे न धीर ll
मनवा धरे न धीर, हो गई यमुना मैली l
कान्हां के बिन आज, वहाँ नीरवता फैली ll
बंशी की नहिं तान, सुनाई दे हंगामां l
आयेंगे क्या श्याम, बता, मेरी प्यारी मां ll
रचनाकार- हरिओम श्रीवास्तव, भोपाल.
वहाँ न पाकर अब उसे, मनवा धरे न धीर ll
मनवा धरे न धीर, हो गई यमुना मैली l
कान्हां के बिन आज, वहाँ नीरवता फैली ll
बंशी की नहिं तान, सुनाई दे हंगामां l
आयेंगे क्या श्याम, बता, मेरी प्यारी मां ll
रचनाकार- हरिओम श्रीवास्तव, भोपाल.
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