Thursday, August 20, 2015

ख़तों की खुशबु- सलमान खान

माना नही मिलनी मुझको, 
तेरे जिस्म की परछाई भी।
तु किसी और की है 
है तेरा कोई शैदायी भी।
ना बाँहो की ही गरमी नसीब में, 
ना तेरी कुरबत ही अब मयस्सर है।
वो जो उठती है तेरे ख़तों से ख़ुशबु,
बस उस से मेरा दिल तर है I


रचनाकार- सलमान खान, मेरठ

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